Sudama | सुदामा | Shri Krishna- Sudama Charitra Katha | श्रीकृष्ण सुदामा मिलन कि 5000 साल पुरानी पौराणिक कथा

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Shri Krishna- Sudama| श्रीकृष्ण सुदामा मिलन कि 5000 साल पुरानी पौराणिक कथा

आज हम यहाँ श्रीकृष्ण सुदामा मिलन कि 5000 साल पुरानी पौराणिक कथा कि चर्चा करेंगे। श्रीकृष्ण का एक ब्राह्मण मित्र सुदामा था। श्रीकृष्ण उनके साथ गुरुकुल में शिक्षा पाई थी। वह घर पर रहते हुए भी संग्रह-परिग्रह से दूर रहते थे, भाग्य के अनुसार जो कुछ भी मिलता था, उसे लेकर खुश रहते थे। उसकी दिनचर्या थी भगवान की उपासना और भिक्षाटन। अपने पति के साथ हर समय खुश रहने वाली उनकी पत्नी परम पतिव्रता थी। एक दिन, भूखी पतिव्रता अपने पति के पास गई और कहा, “भगवान! साक्षात लक्ष्मीपति भगवान श्री कृष्ण आपके सखा हैं।” वह शरणागत वत्सल हैं और ब्राह्मणों के बहुत प्रिय हैं।‘’

श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा थे। वे बहुत बुद्धिमान, विनम्र, निष्पक्ष थे। वे घर में रहते हुए भी किसी तरह का संग्रह नहीं करते थे, बल्कि प्रारब्ध के अनुसार जो मिलता था उसी में खुश रहते थे। उनके कपड़े फटे हुए थे। उनकी पत्नी के कपड़े भी समान थे।

उनकी पत्नी सुशीला थी। वह नाम के साथ शीलवती भी थीं। वह भिक्षा मांगकर लाता था और दोनों उसे ही खाते थे, लेकिन यह बहुत दिन नहीं चल सका। सुशीला कुछ वर्षों में इतनी कमजोर हो गईं कि चलने में उनके शरीर कांपने लगता था।

तब सुशीला का धैर्य थोड़ा कम हुआ और सुदामा से कहा कि वह अपने बचपन के दोस्त श्रीकृष्ण से मिल जाएँ, जो शरणागतवत्सल हैं। वह हमारी मदद करेंगे अगर हमें अपनी स्थिति बताया जाएगा। यह सुनकर वह अपनी पत्नी से बोले कि अगर कोई भेंट देने योग्य वस्तु है तो दे दो. सुशीला ने पड़ोस के घर से चार मुठ्ठी तन्दुल माँगे और अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उसमें बांधकर दे दिए।


सुदामा पैदल द्वारका जाते हुए

सुदामा चल पड़े, जंगल के रास्ते समुद्र की खाड़ी के पास पहुँचे और भूख से थककर वहीं सो गए।

श्रीकृष्ण ने अंतर्यामी होकर देखा कि उनका प्रेमी भक्त सुदामा उनसे मिलने आ रहा है। वह नहीं चाहते थे कि सुदामा को कोई कष्ट हो, इसलिए उन्होंने योगमाया से कहा कि जैसा उन्होंने कहा वैसा ही किया. सुदामा ने सुबह उठकर देखा कि द्वारकाधीश भगवान की जयजयकार हो रही थी।

सुदामा जी को कुछ समझ में नहीं आया और अपना परिचय देते हुए कहा कि वे श्रीकृष्ण के मित्र हैं और उनसे मिलना चाहते हैं। “वो सामने महल है जहाँ द्वारपाल खड़े हैं, वहाँ चले जाओ,” उस व्यक्ति ने कहा। सुदामा की बेहाल हालत देखकर द्वारपाल आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने सुदामा के आने की सूचना श्री कृष्ण को दी।


श्रीकृष्ण और सुदामा का मिलन

श्रीकृष्ण ने द्वारपालों से सुना कि सुदामा आ रहा है, तो वे पलंग से कूद पड़े, दौड़ पड़े और सातों दरवाजे पार कर बाहर आ गए। श्रीकृष्ण ने सुदामा को अपने हृदय से लगाकर रोने लगे। द्वारपाल यह देखकर बेहोश हो गए। जब सुदामा ने अपने बचपन के सखा को देखा, तो उनके नेत्र भी रोने लगे।

श्रीकृष्ण ने सुदामा का हाथ पकड़कर उन्हें अपने पलंग पर बैठाया, फिर स्वयं नीचे बैठ गए और सुदामा के चरणों को अपनी गोद में रखा। श्रीकृष्ण ने रुकमणि से थाल और जल मंगवाया।


सुदामा के पग धोते हुए भगवान द्वारकाधीश

श्रीकृष्ण ने रुकमणि से थाल और जल मंगवाया। वह जल ला ही रही थीं, श्रीकृष्ण ने अपने आंसुओं से ही उनके चरणों को धोया। भगवान ने सुदामा का पाँव देखा, जिसमें कांटा था। भगवान ने तुरंत कांटे को अपने मुख से निकाल दिया।

सुदामा ने पूजन करके चरण प्रक्षालन करके अपनी सभी रानियों को कहा, “प्रणाम करो! ये निश्चित रूप से महापुरुष हैं। रुक्मणि जी, जामवंती, सत्यभामा आदि देवियों ने प्रणाम किया और आर्शीवाद दिया।


श्रीकृष्ण और सुदामा के बीच का वीनोद- वार्तालाप

श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा, “आपने शादी की है क्या?”

सुदामा ने कहा कि मैंने किया है, लेकिन सिर्फ एक।

श्रीकृष्ण ने कहा कि भाभी ने शायद कुछ भोजन भेजा होगा क्योंकि वे शादी कर चुके हैं।

सुदामा जी को अब संकोच होने लगा। उन्हें लगता था कि इतने बड़े-बड़े रत्नजटित महल, जिनसे मैं चार मुट्ठी तन्दुल निकाल सकता हूँ, उनकी सभी पत्नियों का क्या विचार होगा? ऐसा सोचकर सुदामा ने सिर नीचे कर लिया और लज्जित होकर भगवान श्री कृष्ण को चार मुट्ठी नहीं दे पाई।भगवान श्री कृष्ण हर जीव के हृदय में क्या है पता है।

सुदामा के आने का कारण और उनके मन की बात वे जान गए। अब वे सोचने लगे कि यह मेरा प्यारा सखा है और दूसरा, लक्ष्मी की इच्छा से मेरा भजन नहीं गाया।

अब मैं इसे ऐसी संपत्ति दूंगा जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, सोचकर श्री कृष्ण ने सुदामा से पोटली छीन ली।

सुदामा ने उसमें से एक मुट्ठी तन्दुल खाया और एक लोक की संपत्ति दी। उसने दूसरी मुट्ठी खाई और दूसरों को सम्पत्ति दी। तीसरी मुट्ठी तन्दुल खाकर बैकुंठ की भी संपत्ति देने के लिए तैयार थे, लेकिन रुक्मणि जी ने साहसपूर्वक मना करते हुए कहा, क्या इतने बड़े महात्मा के घर से प्रसाद नहीं मिलेगा? क्या आप सब कुछ खा जाएंगे?

भगवान ने दो मुट्ठी तन्दुल खाकर बाकी सब रानियों को बाँट दी।

भगवान ने सुदामा को छप्पन भोजन दिया। महल में सुदामा जी ने ऐसा आराम से सोया मानो वे बैकुंठ में पहुँच गए हों।सुदामा ने सुबह उठकर नियमित क्रियाएं और बाल भोग करके निर्वृत हुए। थोड़े दिन सुदामा जी द्वारकापुरी में रुके।


सुदामा जी को विदाई

थोड़े दिनों बाद जब सुदामा जी को अपना घर याद आया तो उसने भगवान को बताया कि भगवान अभी मैं घर जाना चाहता हूं।बहुत भारी मन से भगवान खुद सुदामा जी को विदा करने के लिए गए। कृष्णजी बहुत उत्साहित थे कि सुदामा जल्दी सुदामापुरी पहुंचे और देखे कि कैसे सुदामापुरी द्वारिकापुरी में बदल गई है।

दूसरी ओर, सुदामा ने सोचा कि श्री कृष्ण को पता था कि मैं धन के लिए आया था, लेकिन वे जानते थे कि धन मिलने के बाद में माया में व्यस्त हो जाएगा, इसलिए उन्होंने धन नहीं दिया, वे कितने दयालु हैं।

इस तरह, सोचते हुए सुदामा जी अपने घर पहुंच गए।


द्वारकापुरी से लौट के बाद का सुदामापुरी (पोरबंदर) का नजारा

सुदामा जी ने घर पहुंच कर आवाज दी, सुशीला कहाँ चली गई? थोड़ी देर में सुशीला ने सैकड़ों सेविकाओं के साथ सोने के थाल में आरती सजाकर सुदामा जी के सामने आकर खड़ी हो गई। सुदामा की आँखों से आंसू बहने लगे और वह सोचने लगे, “धन्य हैं प्रभु जो छिपकर देते हैं, बताते भी नहीं कि मैंने दिया है।” भगवान श्री कृष्ण की उदारता और प्रेम देखकर सुशीला और सुदामा ने निर्णय लिया कि वे निरासक्त भाव से महल में रहकर भगवान की भक्ति करेंगे। इस प्रकार, दोनों भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करते हैं।


श्री कृष्ण सुदामा मित्रता- यह कहानी से हमें मिलने वाली सीख

हमें सुदामा की तरह भगवान की कृपा दोनों तरह से मिलनी चाहिए। ये प्रेमी के लक्षण हैं।

भगवान अपने प्यार करने वालों को इतना कुछ देते हैं कि वे कल्पना भी नहीं कर सकते।

भगवान अपने भक्तों से इतना प्रेम करता है कि कोई भी नहीं कर सकता। सुदामा के पैर का काँटा भगवान ने मुख से निकाला और अपने आंसुओं से उनके चरण धोए। भगवान ही ऐसा कर सकता है।

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